गुमनाम क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि है ‘काला पानी’

-एसएनए में तीन दिवसीय भरत नाट्य पर्व का आगाज
लखनऊ। पद्मश्री राज बिसारिया को समर्पित भरत नाट्य पर्व के अंर्तगत त्रिदिवसीय नाट्य समारोह का आयोजन एसएनए के संत गाडगे प्रेक्षागृह में किया गया। नाट्य समारोह के पहले दिन ललित सिंह पोखरिया के लेखन, परिकल्पना व निर्देशन मेें नाटक काला पानी का मंचन किया गया।
आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत स्वाधीनता के 200 वर्षों के लंबे संग्राम में ऐसे अनेक अकीर्तित बलिदानियों को नाट्यमंचनों के माध्यम से जनमानस के समक्ष लाया गया है जिनका इतिहास में बहुत कम उल्लेख मिलता है। नाटक काला पानी इन्हीं गुमनाम रह गये हुतात्माओं के अप्रतिम बलिदान और वेदना को श्रद्धांजलि दी गयी।
कथानुसार नाटक में अलग-अलग समय में सेलुलर जेल में लाये गये ये क्रान्तिकारी घोर नारकीय यन्त्रणाओं के साथ-साथ देश की स्वतन्त्रता के लिए कुछ न कर पाने की वेदना भोगते रहते हैं। देश से हजारों मील दूर टापू पर एकाकी जीवन बिताते हुए स्वाधीनता आन्दोलन की प्रगति जानने के लिए रात-दिन छटपटाते रहते हैं लेकिन उन्हें कोई विशेष जानकारी नहीं मिल पाती। कारागार में डाले गए पुराने क्रान्तिकारी कारागार लाये गये। नये क्रान्तिकारियों से स्वाधीनता आन्दोलन की प्रगति जानने का प्रयास करते रहते हैं लेकिन उन्हें कभी भी विशेष सफलता नहीं मिल पाती। सबके हृदय में यही ग्लानिबोध रहता है कि वे अंग्रेजों के विरूद्ध ऐसा कोई उल्लेखनीय संघर्ष नहीं कर पाये जिसके परिणाम में उन्हें फांसी का गौरवपूर्ण दण्ड मिल पाता। उनका योगदान नगण्य रहा। जिसके फलस्वरूप उन्हें फांसी की जगह काला पानी का दण्ड दिया गया। देश के काम ना आ पाने का यह ग्लानिबोध उन्हें स्वय के प्रति वितृष्णा से भर देता है। इसलिए यह क्रान्तिकारी कारागार में रहते हुए वहाँ के पुलिसकर्मियों और अधिकारियों का वध करके ग्लानिबोध से मुक्ति पाने का प्रयास करते रहते हैं और वीरगति को प्राप्त होते रहते हैं। नाटक में ललित सिंह पोखरिया, यजुवेन्दर कमल, अनुराग शुक्ला, सुजीत सिंह यादव, सिद्धार्थ श्रीवास्तव, सुश्रत गुप्ता, पीयुष राय, योगेन्द्र पाल, अंकित श्रीवास्तव, अमितेश वैभव चौधरी, अभ्युदय तिवारी, संजीत यादव, विशाल सिंह और ओंकार पुष्कर ने निभायी।

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