संविधान की प्रस्तावना का किया गया वाचन
साधु वासवानी सर्वकालीन अनुकरणीय व्यक्तित्व विषय पर हुयी संगोष्ठी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश सिंधी अकादमी द्वारा मंगलवार को साधु वासवानी (टीएस वासवानी) के जन्म दिवस के उपलक्ष्य पर साधु वासवानी सर्वकालीन अनुकरणीय व्यक्तित्व विषय पर संगोष्ठी का आयोजन इन्दिरा भवन, लखनऊ में किया गया। कार्यक्रम में सर्वप्रथम भगवान झूलेलाल की प्रतिमा पर माल्यार्पण अकादमी निदेशक श्री अभिषेक कुुमार अखिल, प्रकाश गोधवानी, हरीश वाधवानी, दिनेश मूलवानी द्वारा कार्यक्रम का प्रारम्भ किया गया।
कार्यक्रम में सर्वप्रथम विद्वानों, आगुन्तकों, उत्तर प्रदेश सिंधी अकादमी तथा उत्तर प्रदेश पंजाबी अकादमी के कार्मिकों द्वारा आज संविधान दिवस के अवसर पर हमारा संविधान हमारा स्वाभिमान के अन्तर्गत संविधान की प्रस्तावना का वाचन किया गया। इस संगोष्ठी में सिंधी समाज के विद्वानों ने अपने-अपने विचार रखें। सुन्दरदास गोहरानी ने अपने वक्तव्य द्वारा अवगत कराया कि साधु टी0एल0 वासवानी का जन्म 25 नवम्बर, 1879 को अखण्ड भारत के सिंधी प्रदेश में हुआ था। उन्होने 87 साल का जीवन नारी शिक्षा एवं मानव सेवा को समर्पित किया। वह महात्मा गॉधी जी से प्रभावित थे। उन्होने नारी शिक्षा पर जोर दिया और जीवनकाल में केवल कन्याओं के लिए अनेक स्कूल व कालेज स्थापित किये। हर वर्ष 25 नवम्बर को देश और दुनिया में इनके जन्म दिवस को निरामिष दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रकाश गोधवानी ने बताया कि साधु टीएल वासवानी पवित्रता, शॉति, करूणा, सादगी, त्याग, शक्ति व सौम्यता के मधुर मिश्रण हैं, जिनके इन गुणों को हमे अपनाना चाहिए। साधु वासवानी के नूरू ग्रंथ की कुछ पक्तियॉ श्री प्रकाश गोधवानी जी ने बीना बाजे बीना बोले व्याकुल दिलड़ी पेई खोले…,सुनाया। दुनीचन्द चंदानी जी ने उनके जीवन व व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए अवगत कराया गया कि साधु टीएल वासवानी जैसे विरले संत महात्मा पैदा होते है, जिन्होने ब्रम्हलीन स्वामी हिरदासराम जी की तरह अपने लिए कुछ नहीं बल्कि सम्पूर्ण जीवन शिक्षा व सेवा को समर्पित कर दिया । साधु वासवानी उस युग में आये जब भारत परतंत्रता की बेंड़ियों में जकड़ा हुआ था। देश में स्वतन्त्रता के लिए आन्दोलन हो रहें थे। कोई भी व्यक्ति इस आंदोलन में अपने आपको अलग नहीं रख पाता था। बंगाल के विभाजन के मामले पर उन्होने सत्याग्रह में भाग लेकर सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया।
श्री अनूप केसवानी द्वारा अवगत कराया गया कि साधु वासवानी ने जीव हत्या बंद करने के लिए जीवन पर्यन्त प्रयास किया। जीव मात्र के प्रति उनके मन में अगाध प्रेम था। वे भारतीय संस्कृति एवं धार्मिक सहिष्णुता के अनन्य उपासक थे। वे सभी धर्र्माे को मानते थे। उनका कहना था कि प्रत्येक धर्म की अपनी अपनी विशेषताएं हैं। वे धार्मिक एकता के प्रबल समर्थक थे।
श्रीमती ज्योति जी द्वारा अपने वक्तव्य में अवगत कराया गया कि साधु वासवानी जी ने अपने भीतर विकसित होने वाली आध्यात्मिक प्रवृत्तियों को बचपन से ही पहचान लिया था। वह समस्त संसारिक बन्धनों को तोड़कर भगवत भक्ति में रम जाता चाहते थे। उनके बचपन का नाम थांवरदास लीलाराम वासवानी रखा गया। सांसारिक जगत में उन्हें टी0एल0 वासवानी के नाम से जाना गया तो अध्यात्मिक लोगो ने उन्हें साधु वासवानी के नाम से सम्बोधित किया।
उत्तर प्रदेश सिंधी अकादमी के निदेशक अभिषेक कुमार अखिल ने कहा कि ये विषय आज की परिस्थितियों में अत्यन्त सामायिक है और समाज को ऐसे महापुरूष के व्यक्तित्व का अनुकरण करना चाहिए। कार्यक्रम में पटेल दास हीरवानी, दिनेश मूलवानी, लता करमचन्दानी, रितु करमचन्दानी, कनिका गुरूनानी, हरीश वाधवानी आदि उपस्थित थे।