अविश्वसनीय यात्रा पर ले जाती है फिल्म ‘आई वांट टू टॉक’

शूजित सरकार का कहानी कहने का अपना ढंग है
लखनऊ। जहां जीवन का अंत मान लिया जाए, वहां से शुरूआत करनी हो तो? डॉक्टर आपसे कहें कि आपकी जिंदगी के महज 100 दिन बचे हैं, तो या तो आप जीवन के उस अंतिम पड़ाव में अपनी अधूरी ख्वाहिशों को पूरा करने में लग जाएंगे या फिर हार मान कर बैठ जाएंगे, लेकिन निर्देशक शूजित सरकार का ये नायक इन दोनों में से कोई आॅप्शन नहीं चुनता। वह मौत को ठेंगा दिखाकर आॅडियंस को एक ऐसी अविश्वसनीय यात्रा पर ले चलता है, जो आपको कई जगहों पर सुन्न का देती है, मगर अंत में उम्मीद और फीलगुड दे जाती है। कहानी है अर्जुन सेन (अभिषेक बच्चन) की, जो शूजित सरकार के दोस्त भी हैं।

कैलिफोर्निया की मार्केटिंग की दुनिया में अर्जुन धूम मचा रहा है। प्रोफेशनल लाइफ में कामयाब अर्जुन शादी के मामले में उतना खुशकिस्मत साबित नहीं हुआ है। पत्नी से अलगाव हो चुका है और बेटी रेहा मंगलवार, गुरुवार और हर दूसरे वीकेंड पर पिता के साथ रहती है। एक दिन आॅफिस की एक धमाकेदार मीटिंग के दौरान अर्जुन को खांसी आती है और मुंह से खून आने लगता है। अस्पताल ले जाने के बाद पता चलता है कि उसे लैरिंजीयल कैंसर है और उसकी जिंदगी के सिर्फ 100 दिन बचे हैं।अब तक अर्जुन को यह अहसास भी हो चुका है कि उसकी बेटी (अहिल्या बामरू) भी उसके करीब नहीं है। उसकी नौकरी छूट जाती है। बोलने और हाजिर जवाबी में माहिर अर्जुन अब शायद कभी न बोल पाए, मगर जीवन के इस सबसे दर्दनाक समय में अर्जुन जीवन जीतने के युद्ध में उतर पड़ता है। हालांकि बीच में एक बार वह अपनी जान लेने की भी सोचता हैं, मगर एक-दो नहीं बल्कि पूरी बीस सर्जरी से गुजरने वाला जुझारू अर्जुन अपनी बेटी के साथ अपने रिश्ते को बेहतर बनाता है। इस सिलसिले में उसका नीरस एकाकीपन, नौकरी खोना, अस्पताल के लंबे-लंबे बिल, घर चलाना, लगातार सिर पर लटकती मौत की तलवार से जूझना जैसे कई पड़ाव आते हैं।

निर्देशक शूजित सरकार का कहानी कहने का अपना ढंग है। वे जीवन की क्षणभंगुरता की भयावह सोच तक ले जाते हैं और आपके अंदर एक खालीपन भर देते हैं। जब आपका दर्द गहरा होने लगता है, तब नायक की जिजीविषा मरहम का काम करती है। अर्जुन सेन की 20 सर्जरी को वे मेलोड्रामा के साथ महिमामंडित नहीं करते, बल्कि जीवन का रूटीन बना देते हैं। दर्शक अर्जुन के दर्द में डूबने के बजाय उसमें तैरने लगते हैं। ‘अक्टूबर’ और ‘पीकू’ जैसी उत्कृष्ट फिल्में देने वाले शूजित यहां भी मानवीय रिश्तों की गांठ खोलते नजर आते हैं। बाप-बेटी के बीच के दृश्य यादगार बन पड़े हैं। फिल्म का फर्स्ट हाफ आपको थोड़ा धीमा लग सकता है, मगर सेकंड पार्ट में फिल्म सरपट दौड़ती है। शूजित ने अस्पताल के दृश्यों में मोंटाज का अच्छा इस्तेमाल किया है। वे डॉक्टर (जयंत कृपलानी) के साथ मरीज अभिषेक की रिलेशनशिप के माध्यम से कई हल्के-फुल्के पल जुटाने में कामयाब रहे हैं। फिल्म के शीर्षक के अनुसार कहानी में संवाद भी चुटीले हैं। अभिषेक के प्रोस्थेटिक मेकअप पर भी अच्छी मेहनत की गई है।

हां, अगर अभिषेक की तलाकशुदा पत्नी की बैक स्टोरी दिखा दी जाती, तो कहानी को और बल मिलता। अभिनेता के रूप में अभिषेक बच्चन के लिए यह भूमिका निसंदेह बहुत ही चुनौतीपूर्ण रही होगी, क्योंकि उन्हें एक ऐसे सर्वाइवर को जीना है, जो किसी भी पल मौत की गोद में जा सकता है, मगर उसे मौत का सोग नहीं, बल्कि जिंदगी का जश्न मनाना है। मानना पड़ेगा, अभिषेक इस भूमिका में कमाल कर गए हैं। किरदार के हर लेयर को उन्होंने आत्मसात किया है, चाहे मरीज के रूप में उनका जुझारूपन हो या बेटी के साथ अपने रिश्तों को संवारता पिता। उनका फिजिकल ट्रांसफॉर्मेशन किरदार को मजबूत बनाता है। अर्जुन सेन की बेटी की भूमिका में बाल कलाकार हो या युवा बेटी के रोल में अहिल्या बामरू, दोनों ने ही गजब का काम किया है। डॉक्टर के रोल में जयंत कृपलानी खूब मजे करवाते हैं। अपनी छोटी-सी भूमिका में जॉनी लीवर राहत के पल देते हैं। नर्स नैन्सी के रोल में क्रिस्टीन गुडार्ड याद रह जाती हैं। शूजित सरकार और अभिषेक बच्चन की कलाकारी और सर्वाइवर स्टोरी के शौकीन यह फिल्म देख सकते हैं।

ऐक्टर: अभिषेक बच्चन, अहिल्या बामरू, जॉनी लीवर, जयंत कृपलानी, क्रिस्टीन गुडार्ड
डायरेक्टर : शूजित सरकार
रेटिंग-3/5

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