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‘उधार का पति’ नाटक ने दर्शकों को खूब गुदगुदाया

एसएनए के वाल्मीकि रंगशाला में किया गया मंचन
लखनऊ। चित्रण कला मंच समिति की नवीनत हास्य नाट्य प्रस्तुति उधार का पति का मंचन एसएनए के वाल्मीकि रंगशाला में किया गया। नाटक का लेखन वनमाला भवालकर, परिकल्पना व निर्देशन विपिन कुमार का रहा।
नाटक के कथानुसार शीला और शिक्षक अशोक आपस में प्रेम विवाह कर लेते है जिस कारण शीला के पूजीपति दादा जी बहुत नाराज हो जाते है और अपनी पोती शीला से सारे सबंध तोड़ लेते है किन्तु कुछ समय बाद उनको पता चलता है कि शीला के लड़का पैदा हुआ है तो वह अपने को रोक नहीं पाते. और अपने परपोते को देखने की चाहत में अपनी छोटी नातिन रीता के साथ शीला के घर आने की इच्छा जाहिर करते है शीला के दादा जी जो कि काफी सम्पन्न व्यक्ति है उनकी सम्पन्ता के बराबर अपनी हैसियत को बढ़ा चढ़ा कर पेश करने के इरादे से शीला अपने पडोसियो से घर के तमाम सामान एक दिन के लिए उधार मागती है चूंकि अशोक और दादा जी की बनेगी नही इस विचार से शीला अशोक को अपना नौकर बना कर घर में ही रहने को कहती है. क्यों कि दादा जी सिर्फ उसके बेटे को ही देखने के लिए केवल एक दिन के लिए ही आने वाले है किन्तु जब दादा जी आ जाते है तब वह शीला के पति से भी मिलने की इच्छा जताते है तो शीला एक पति भी किराये का इंतजाम कर लेती है अब उधार का पति और अपने असली पति के बीच सामजस्य बिठाने में और अगले ही दिन पड़ोसियो का अपना सामान वापस लेने के दौरान शीला को जो खासी परेशानिया होती है उससे अनायास ही हास्य की उत्पत्ति होती है। अन्त में दादा जी को सब मालूम हो जाता है तब वह अपने बच्चों की इन कस्तूतों पर खूब मजे लेकर हसते हैं। अन्तत परिणाम यही निकलता है कि दुनिया को दिखावे के चक्कर में न आना चहिये जो जिसके पास जैसा है उसमे ही खुश रहना चहिये यही नाटक का सुखद अंत होता है। नाटक में अहम भूमिका पोषिता राज, अक्षत ऋषि, शीलू मलिक, सुमित श्रीवास्तव, सुअंश सक्सेना, पीहू गुप्ता, अभिषेक राजपूत, दिनेश कुमार और रोहित शुक्ला ने निभायी।

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