क्षीर सागर में शयन से जागे श्री हरि, मंदिरों व घरों में हुई आराधना

लखनऊ। देवउठनी एकादशी पर आज भक्तों ने विष्णु भगवान की पूजा-अर्चना की। वहीं कई जगह भक्तों ने आज ही सालिग्राम और तुलसी विवाह कर सुख समृद्धि की कामना की। व्रती महिलाओं ने प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक बनाया। उसके बाद भगवान विष्णु के चरणों को अल्पना से बनाएं और उन्हें ढक दिया, चौक के चारों ओर गन्ने लगा दे इसके बाद चौक पर सारे फल और सब्जियां रखकर और देवउठनी एकादशी की रात में सुभाशित स्त्रोत का पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का पाठ और भजन कीर्तन किया गया। भगवान विष्णु जी भी इस दिन चार माह के शयन के बाद उठते हैं और शुभ कार्य शुरु हो जाता है। वहीं कुछ भक्तों ने घरों में तुलसी-विष्णु की विवाह के लिए मंडप सजाया। मां तुलसी और भगवान सालिगराम की शादी की गई। तुलसी के संग शालिग्राम की स्थापना की गई।
गमले के चारों ओर गन्ने का मंडप बनाकर। तुलसी को ओढ़नी ओढ़ाए और गमले को साड़ी पहनाकर श्रृंगार हुआ। भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिहांसन हाथ में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा हुई और इसके बाद आरती करके विवाह उत्सव सम्पन्न हुआ।

मंदिरों में उत्सव जैसा रहा माहौल:
चार महीने तक महालक्ष्मी के साथ क्षीर सागर में अखंड निद्रा लेने वाले भगवान विष्णु मंगलवार को भक्तों की आराधना के बाद जाग गए। भगवान के जागने के साथ ही कार्तिक में मास पर्यंत चलने वाले दीपोत्सव की छटा और चटख हो गई। वहीं हरि प्रबोधनी एकादशी होने की वजह से भोर में ही गंगा तटों पर स्नानार्थियों का रेला उमड़ पड़ा।
भक्तों ने भगवान को जगाने के लिए आराधना शुरू कर दी। वैसे गंगा तटों पर दीपदान और अर्घ्य देने का सिलसिला भोर में ही शुरू हो गया था। तुलसी से भगवान विष्णु के विवाह की रस्म पूरी की जाने लगी। राजधानी लखनऊ के मंदिर में उत्सव जैसा माहौल था। शहर के कई मंदिरों से भव्य बारात निकाली गई। गोमती घाट पर भव्य समारोह में मंत्रोच्चार के बीच तुलसी के साथ भगवान की शादी रचाई गई। मनकामेश्वर घाट की ओर से भी तुलसी विवाह का उत्सव मनाया गया।

भगवान को गन्ने का लगा भोग:
देवउत्थान एकादशी को भगवान को नये गन्ने का भोग अर्पित किया गया। सीजन का यह पहला भोग खेतों से कट कर लाया गया। इस दौरान बाजार में गन्ना, सकरकंद व सिंघाड़े खरीदने की होड़ मची रही।

बाजारों में गन्ने व सिघाड़ा की खूब हुई बिक्री


देवोत्थान एकादशी का पर्व श्रद्धा एवं उल्लास के साथ मनाया गया। घरों से लेकर मंदिरों तक देवी-देवताओं का पूजन किया गया। घरों में तुलसी पूजन का भी आयोजन किया गया। लखनऊ के बाजारों में गन्ना, सिघाड़ा, मूली और गुड़ की खूब बिक्री हुई। मान्यता है कि देवोत्थान एकादशी पर सभी देव जागृत हो जाते हैं, इसलिए के साथ सभी शुभ कार्यों की शुरूआत हो जाती है। शहर से लेकर कस्बों और गांवों तक लोगों ने व्रत रखकर सिघाड़ा, शकलकंदी, गुड़ का प्रसाद ग्रहण किया।

शालिग्राम संग आये बाराती, हुआ तुलसी विवाह
लखनऊ। शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में मंगलवार को देवोत्थानी एकादशी धूमधाम से मनी। लोगों ने व्रत रखकर सुबह ही तुलसी के पौधों की पूजा की। मंदिरों में भी तुलसी पूजन और विवाह का आयोजन हुआ।
शास्त्री नगर के श्री दुर्गा मंदिर धर्म जागरण एवं सेवा समिति की ओर से श्री तुलसी विवाह उत्सव धूमधाम से मनाया गया।
प्रतिवर्ष की भांति अयोध्या से 100 से अधिक साधु संत बारीतियों के रूप मे 2 बसों द्वारा राधा कृशन मंदिर ऐशबाग पधारे, वहाँ से बारात तैयार हुई। सालिग्राम जी दूल्हा और साधु संत बाराती बने। तिलक नगर, रामनगर होते हुए रात्री 9 बजे बारात दुर्गाजी मंदिर बारात पहुंची, जहां मंदिर की और से सर्व श्री ताराचंद , पवन जी अग्रवाल, राम नरेश मिश्र, राजेन्द्र गोयल, मुख्य यजमान आशा निगम ने बारातियों को पुष्प माल पहन कर स्वागत किया। सभी साधु संत एक जैसे वस्त्रों मे बहुत शोभायमान हो रहे थे। इस अवसर पर साध्वी कल्याणी देवी ने कहा कि किसी समाज को अपनी संस्कृति को जीवित रखने के लिए अपने रिवाज और रस्मों, त्योहार और परम्पराओ का निरंतर पालन करते रहना चाहिए, इसके लिए मंदिर समिति को धर्म ध्वज वाहक बनकर इन कार्यों के लिए साधुवाद दिया। इस अवसर पर श्री रजनीश गुप्ता और स्थानीय पार्षद, भी उपस्थित रहे। रात्री 12 बजे विवाह सम्पन्न हुआ और बाराती तुलसी जी को दुल्हन के रूप मे लेकर विदा हुए।
सनातन महासभा की ओर से तुलसी विवाह का आयोजन जानकी पुरम स्थित संस्था कार्यालय में मंगलवार को अध्यक्ष डा. प्रवीण की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। डॉ प्रवीण ने बताया कि महिलाओं ने विशेष रूप से तुलसी व शालिग्राम भगवान का विवाह पूजन के साथ किया। इस विशेष सनातन संस्कृति को जीवित रखने की परंपरा को घर घर में आयोजित किया गया। इस विशेष अवसर पर कथा सुनने के साथ लता बाजपेयी, डॉ0 आहुति, नीलिमा त्रिपाठी, मधुबाला, रेनू शर्मा आदि उपस्थित रहे।

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