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विश्व व्यापार के नियमों के साथ खिलवाड़ किया गया: जयशंकर

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बृहस्पतिवार को कहा कि स्वतंत्रता मिलने के बाद पहले वर्ष में भारत ने बहुपक्षवाद पर भरोसा किया और वह कश्मीर पर हुए आक्रमण
के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले गया, लेकिन अन्य ने भू-राजनीतिक कारणों से इसे विलय का मामला बना दिया।

उन्होंने रायसीना डायलॉग के एक सत्र में राष्ट्रीय हितों और बहुपक्षवाद के बीच सह-अस्तित्व की आवश्यकता पर चर्चा करते हुए यह टिप्पणी की। जयशंकर ने कहा, हमेशा से ही यह मामला रहा। हमारा अपना उदाहरण देखिए, स्वतंत्रता के पहले वर्ष में हमने बहुपक्षवाद पर भरोसा किया और कश्मीर पर आक्रमण के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले गए और अन्य ने इसे विलय का मुद्दा बना दिया और उन्होंने भूराजनीतिक कारणों से ऐसा किया।

उनसे पूछा गया था कि क्या वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में मूल्य कम महत्वपूर्ण दिख रहे हैं क्योंकि कुछ देश सिद्धांतों से तो समझौता करते हैं, लेकिन हितों से कभी नहीं।
उन्होंने कहा, अगर आप कहते हैं कि लोग बहुपक्षवाद से खिलवाड़ कर रहे हैं, तो उन्होंने हमेशा ऐसा किया है। हम परिपक्व हो गए हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि हमें बहुपक्षवाद
के खिलाफ होना चाहिए।

जयशंकर ने कहा, बहुपक्षवाद लघुत्तम साझा विभाजक या उससे कुछ ऊपर होता है। इसका अस्तित्व राष्ट्रीय हितों एवं विभिन्न देशों के बीच समीकरण एवं प्रतिस्पर्धा के साथ चलता रहता है। विदेश मंत्री ने यह भी माना कि भावना और एकजुटता के लिए भी जगह है। संयुक्त राष्ट्र में सुधार पर एक अलग सवाल का जवाब देते हुए जयशंकर ने वैश्वी करण का हवाला दिया और कहा कि तथ्य यह है कि विश्व व्यापार नियमों के साथ खिलवाड़ किया गया है। उन्होंने कहा, अगर आप पिछले पांच सालों को देखें, तो एक तरह से सभी बड़े मुद्दों हम बहुपक्षीय समाधान नहीं ढूंढ़ पाए हैं। इसलिए परिणाम या परिणामों की कमी सुधार करने के मामले को दर्शाती है।

जयशंकर ने कहा, लेकिन मुझे लगता है कि एक बड़ी वैश्विक बातचीत और वैश्विक पुनर्संतुलन भी है जो संयुक्त राष्ट्र से भी बड़ा है, जो वास्तव में किसके नियमों के (बारे में) हैं, यह कैसे काम करता है क्योंकि कई मामलों में यह भी हुआ है कि नियमों के साथ खिलवाड़ किया गया है। उन्होंने वैश्वीकरण का उदाहरण दिया और कहा कि विश्व व्यापार
नियमों के साथ खिलवाड़ किया गया है। उन्होंने कहा, आज हमारे सामने बहुत सारी चुनौतियां हैं जो इस बात से उत्पन्न हुई हैं कि देशों ने अंतरराष्ट्रीय प्रणाली की कीमत पर अपने लाभ के लिए इसका उपयोग कैसे किया है।

विभिन्न जटिल भूराजनीतिक चुनौतियों और उन पर प्रमुख देशों के विविध रुख के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा कि प्रयास बीच का रास्ता निकालने का होना चाहिए। उन्होंने कहा, हर किसी का प्रयास बीच का रास्ता निकालने का होगा। कई मामलों में वास्तविकता यह है कि हम कोई बीच का रास्ता नहीं खोज पाएंगे। हम कोई रास्ता, कोई आम रास्ता ढूंढ़ेंगे।

उन्होंने कहा, लेकिन यह विचार कि हर कोई आज के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमत होगा, एक फंतासी है। तथ्य यह है कि प्रतिस्पर्धा वास्तविक है। आपने (संचालक) दलगत राजनीति के बारे में बात की, कभी-कभी इसमें भी एक तर्क होता है। उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि वास्तविकता यह है कि हमें ऐसे समूह बनाने के लिए धीरे-धीरे संघर्ष करना होगा जो बदलाव के लिए दबाव डालेंगे।

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