लखनऊ। साल 2025 में आने वाली सबसे पहली एकादशी है पुत्रदा एकादशी। वैसे तो सभी एकादशी का हिंदू धर्म में महत्व है। लेकिन, पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व हिंदू धर्म में बताया गया है। पुत्रदा एकादशी का व्रत खासतौर पर संतान सुख की प्राप्ति के लिए रखा जाता है। साथ ही व्यक्ति इस व्रत को करने से घर परिवार में भी सुख शांति बनी रहती है। पंचांग के अनुसार, पुत्रदा एकादशी तिथि का आरंभ 9 जनवरी को दोपहर में 12 बजकर 23 मिनट पर होगा और 10 जनवरी को सुबह 10 बजकर 20 मिनट तक एकादशी तिथि रहेगी। शास्त्रों के अनुसार, उदय काल में एकादशी तिथि होने के कारण पुत्रदा एकादशी का व्रत 10 जनवरी को रखा जाएगा।
पुत्रदा एकादशी का महत्व
पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है। इसी के साथ मान्यता यह भी है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के घर में सुख शांति बनी रहती है। साथ ही इस व्रत को करने से भगवान विष्णु के साथ साथ माता लक्ष्मी की भी विशेष कृपा व्यक्ति को मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक राजा सुकंतुमान के कोई भी संतान नहीं थी। किसी भी संतान होने के कारण वह बहुत ही दुखी रहते थे। राजा को हमेशा यही चिंता सताती थी कि उनके बाद उनका वंश कौन चलाएगा। यही सोच सोच कर वह बहुत परेशान रहते थे। फिर एक बार एक ऋषि ने उन्हें पुत्रदा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। जिसके बाद राजा और रानी दोनों ने ही पूरी श्रद्धा के साथ यह व्रत किया। व्रत के प्रभाव और भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें संतान की प्राप्ति हुई। तभी से संतान सुख की कामना रखने वाले लोग इस व्रत को करने लगे।
पौष पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त
पौष माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन पुत्रदा एकादशी मनाई जाती है। इस साल पौष पुत्रदा एकादशी 10 जनवरी को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरूआत 09 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर होगी। वहीं, 10 जनवरी को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर एकादशी तिथि का समापन होगा। साधक स्थानीय पंचांग के अनुसार व्रत रख सकते हैं।
पुत्रदा एकादशी पर यह विशेष योग है
इस वर्ष पौष मास की पुत्रदा एकादशी अत्यंत शुभ है। इस दिन पूरे दिन ब्रह्म योग का शुभ योग बना है। शास्त्रों में इस शुभ योग में दान करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस शुभ योग में व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पौष पुत्रदा एकादशी 2024 व्रत विधि
एकादशी से एक दिन पहले दशमी को सूर्यास्त के पश्चात भोजन ग्रहण ना करें। दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण करें। एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान कर ले और स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। व्रत के संकल्प लेने के पश्चात भगवान विष्णु की गंगाजल, तुलसी, फूल, पंचामृत, तिल से पूजा करें। व्रत के दिन अन्न ग्रहण ना करें। शाम के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा एवं आरती करें। व्रत के एक दिन बाद द्वादशी को सुबह उठकर स्नान कर ले एवं व्रत का पारण करें।