पितृ पक्ष 17 से शुरू, पूर्वजों के लिए होगा पिंडदान

लखनऊ। हर साल पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या पर समाप्त होता है। इस साल 17 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरूआत हो रही है, जिसका समापन 2 अक्तूबर को होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार साल के ये 16 दिन पूर्वजों की पूजा, आत्म शांति और आशीर्वाद पाने के लिए बेहद खास होते हैं, इन्हें श्राद्ध कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध अवधि के दौरान हम सभी के पूर्वज धरती पर आते हैं। ऐसे में पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती हैं। पितृ पक्ष के समय कई नियमों का पालन भी किया जाता है, जिससे पूर्वजों की कृपा परिवार पर बनी रहती है। आमतौर पर लोग श्राद्ध के दौरान पूजा पाठ से जुड़े कार्यों पर अधिक जोर देते हैं। इससे पितरों का आशीर्वाद और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस दौरान पितरों का तर्पण करने से पितृ ऋण चुकाने में मदद मिलती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 17 सितंबर को प्रात: 11:44 से शुरू हो रही है और इसका समापन 18 सितंबर को प्रात: 08:04 पर हो रहा है। ऐसे में भाद्रपद पूर्णिमा व्रत 17 सितंबर को होगा और उदयातिथि के आधार पर भाद्रपद पूर्णिमा का स्नान और दान 18 सितंबर को हो। श्राद्ध दिन में 11 बजे के बाद करते हैं, ऐसे में 17 सितंबर को पूर्णिमा तिथि में श्राद्ध हो पाएगा क्योंकि 18 सितंबर को सुबह 08:04 बजे पूर्णिमा तिथि खत्म हो जा रही है। इस प्रकार पितृ पक्ष का प्रारंभ 17 सितंबर दिन मंगलवार से होगा।

पितृ पक्ष का महत्व
पितृ पक्ष हिंदुओं के लिए अपने पूर्वजों को सम्मान देने और परिवार की भलाई और समृद्धि के लिए उनका आशीर्वाद लेने का समय है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि के दौरान अनुष्ठान करने और प्रसाद चढ़ाने से पूर्वजों की आत्माओं को शांति और मुक्ति मिलती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वे अपने वंशजों को खुशी और सफलता का आशीर्वाद देते हैं।

पितृ पक्ष 2024 तिथियां
17 सितंबर, मंगलवार: पूर्णिमा श्राद्ध
18 सितंबर, बुधवार: प्रतिपदा श्राद्ध
19 सितंबर, गुरुवार: द्वितीया श्राद्ध
20 सितंबर, शुक्रवार: तृतीया श्राद्ध
21 सितंबर, शनिवार: चतुर्थी श्राद्ध, महाभरणी
22 सितंबर, रविवार: पंचमी श्राद्ध
23 सितंबर, सोमवार: षष्ठी श्राद्ध, सप्तमी श्राद्ध
24 सितंबर, मंगलवार: अष्टमी श्राद्ध
25 सितंबर, बुधवार: नवमी श्राद्ध, मातृ नवमी
26 सितंबर, गुरुवार: दशमी श्राद्ध
27 सितंबर, शुक्रवार: एकादशी श्राद्ध
29 सितंबर, रविवार: द्वादशी श्राद्ध, मघा श्राद्ध
30 सितंबर, सोमवार: त्रयोदशी श्राद्ध
1 अक्तूबर, मंगलवार: चतुर्दशी श्राद्ध

2 अक्तूबर, बुधवार: अमावस्या श्राद्ध, सर्व पितृ अमावस्या

सोमवती अमावस्या 2 को, स्नान-दान का विशेष महत्व

लखनऊ। हिंदुओं में अमावस्या का धार्मिक महत्व है। इस दिन लोग धार्मिक और आध्यात्मिक कार्य करते हैं। इस बार यह भाद्रपद अमावस्या होगी। इस बार यह अमावस्या सोमवार को पड़ रही है इसीलिए इसे सोमवती अमावस्या भी कहा जाता है। तमिलनाडु में इस दिन को अवनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। मारवाड़ी समुदाय में इस दिन को भादो अमावस्या या भादी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। इस साल सितंबर 2024 में सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा है।
सोमवती अमावस्या के अवसर पर ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र नदियों में स्नान और तर्पण करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। यह बच्चे के जीवन में खुशियाँ लाता है। सोमवती अमावस्या 2 सितंबर 2024, सोमवार को पड़ रही है। ये भाद्रपद माह की अमावस्या होगी। मान्यता है कि इस दिन पितरों का श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान कर दिया जाता है। ऐसा करने से जीवन के हर दुख, कष्टी दूर हो जाते हैं।

सोमवती अमावस्या 2024 मुहूर्त
भाद्रपद माह की अमावस्या तिथि आरंभ: 2 सितंबर 2024, प्रात: 05 बजकर 21 मिनट पर
भाद्रपद माह की अमावस्या तिथि समाप्त: 3 सितंबर 2024, प्रात: 07 बजकर 24 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04.38 – सुबह 05.24
पूजा मुहूर्त – सुबह 06.09 – सुबह 07.44

सोमवती अमावस्या पर क्या करें
सोमवती अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। आटे की गोलियां बनाकर मछलियों और चींटियों को खिलाएं। पीपल, बरगद, केला और तुलसी जैसे पेड़ लगाने चाहिए, ऐसा माना जाता है कि वहां देवता निवास करते हैं। माना जाता है कि सोमवती अमावस्या पर किए गए ये काम पितरों को प्रसन्न करते हैं और जीवन में खुशियां लाते हैं।

सोमवती अमावस्या पर पूजन विधि
सोमवती अमावस्या का दिन पितरों और शिव की पूजा को समर्पित है। इस दिन सूर्योदय से पहले नदी में स्नान करना चाहिए। फिर कच्चे दूध में दही और शहद मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें। चौमुखी घी का दीपक जलाकर शिव चालीसा का पाठ करें। इस दिन व्रत करने से विवाह में कोई परेशानी नहीं आती और संतान में वृद्धि होती है।

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