नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने चुनाव में सभी प्रत्याशियों के लिए अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की जानकारी देने संबंधी निर्देशों के कथित उल्लंघन के कारण अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए दायर याचिका पर शुक्रवार को केन्द्र और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किए।
याचिका पर पांच सदस्यीय संविधान पीठ
न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान तीन चुनाव उपायुक्तों, विधि सचिव और कैबिनेट सचिव से भी 25 सितंबर, 2018 के फैसले पर अमल नहीं होने के बारे में जवाब मांगा है। एक जनहित याचिका पर पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल सितंबर में सुनाए गए अपने फैसले मे कहा था कि सभी प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से पहले निर्वाचन आयोग के समक्ष अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की घोषणा करनी होगी और प्रत्याशियों की पृष्ठभूमि के बारे में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए ताकि मतदाताओं को उनके बारे में जानकारी मिल सके।
आयोग ने पिछले साल 10 अक्ट्रबर
निर्वाचन आयोग ने पिछले साल 10 अक्ट्रबर को फार्म 26 में संशोधन के बारे में अधिसूचना जारी की थी और राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों को आपराधिक मामलों का प्रकाशन करने का निर्देश दिया था। हालांकि, उपाध्याय ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि निर्वाचन आयोग ने चुनाव चिह्न आदेश, 1968 और आचार संहिता में संशोधन नहीं किया है। इस वजह से इस अधिसूचना का कानून की नजर में कोई महत्व नहीं है। याचिका में कहा गया है कि आयोग ने प्रमुख समाचार पत्रों और समाचार चैनलों की सूची प्रकाशित नहीं की और न ही प्रत्याशियों के लिए आपराधिक मामलों के विवरण की घोषणा करने के समय के बारे में स्पष्ट किया।
इस वजह से प्रत्याशी कम लोकप्रिय
इस वजह से प्रत्याशी कम लोकप्रिय समाचार पत्रों में इन्हें प्रकाशित करा रहे हैं और कम महत्वपूर्ण समय के दौरान चैनलों पर इसका प्रसारण करा रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग ने चुनाव चिह्न आदेश और आदर्श आचार संहिता में आवश्यक संशोधन के बगैर ही दस मार्च को लोकसभा के चुनाव कार्यक्रम की घोषण कर दी जबकि शीर्ष अदालत के 25 सितंबर, 2018 के फैसले का यही सार था और इसीलिए याचिकाकर्ता अवमानना कार्यवाही के लिए याचिका दायर कर रहा है।