लखनऊ। एक थप्पड़, बस इतनी सी बात, क्या इस पर कोई तलाक ले सकता है? क्या इसे भूल कर आगे नहीं बढ़ जाना चाहिए? लेकिन बात है थप्पड़ के पीछे छिपी मानसिकता की।
एक थप्पड़ से शारीरिक चोट बहुत छोटी हो सकती है, लेकिन आत्मा पर लगी चोट बहुत गहरी होती है। अमृता तापसी पन्नू का आत्म-सम्मान अपनी निगाह में गिर जाता है जब उसका पति विक्रम पवैल गुलाटी एक छोटी-सी बात पार्टी में सबके सामने उसे थप्पड़ जमा देता है। अमृता के आत्म-सम्मान को उस समय और चोट पहुंचती है जब अगली सुबह विक्रम यह सोच कर थोड़ा परेशान होता है कि लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे? अमृता के बारे में क्या सोचेंगे या अमृता क्या सोच रही है उसकी परवाह उसे है ही नहीं।
अमृता का कोई वजूद है या उसकी भी कुछ सोच है, यह बात विक्रम के दिमाग में आती ही नहीं। उसकी जिंदगी सिर्फ खुद के इर्दगिर्द ही घूमती है। अमृता और विक्रम पढ़े-लिखे हैं। अमृता बाय चॉइस हाउसवाइफ है। उसने अपनी लाइफ को विक्रम की लाइफ में इनवेस्ट किया है। अपनी पसंद को भूला कर विक्रम की पसंद को ही अपनी पसंद माना, लेकिन इस थप्पड़ की वजह से वह वो देख लेती है जो अब तक उसे नहीं दिखाई दे रहा था। अनुभव सिन्हा द्वारा निर्देशित और लिखित फिल्म थप्पड़ कई सवाल पुरजोर तरीके से उठाती है। फिल्म कहती है कि ज्यादातर शादी महज समझौता या डील हो गई हैं।
निर्देशक अनुभव सिन्हा ने बहुत ही उम्दा तरीके से बातों को रखा है। दर्शकों को सोचने पर मजबूर भी किया है। कई अनकही बातें भी कही हैं। फिल्म में, खासतौर पर सेकंड हाफ में, कहानी और मुद्दे का साथ छूटता भी है और लगता है कि फिल्म को खींचा जा रहा है, लेकिन मुद्दा शक्तिशाली होने के कारण दर्शकों का ध्यान फिल्म से भटकता नहीं है।
फिल्म के आखिर में दो-तीन इमोशनल सीन फिल्म को पॉवरफुल बनाते हैं। तापसी पन्नू लगातार अच्छा काम कर रही है। थप्पड़ में उनके लिए संवाद कम हैं और उन्हें अपने चेहरे, हाव-भाव और आंखों से अपने अंदर घुमड़ रहे दर्द को बयां करना था और उन्होंने यह मुश्किल काम शानदार तरीके से किया है।
तापसी के अभिनय का ही यह कमाल है कि उनके कैरेक्टर का दर्द दर्शक फील करते हैं। पवैल गुलाटी ने अपना पार्ट ठीक से निभाया है। कुमुद मिश्रा एक बार फिर साबित करते हैं कि वे कितने बेहतरीन एक्टर हैं। कुल मिलाकर थप्पड़ सॉलिड है और देखी जानी चाहिए।