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रिश्तों की उथल-पुथल से भरपूर है ‘कुंडली’

एसएनए के वाल्मीकि रंगशाला में नाटक का मंचन
लखनऊ। अतिवाद, चाहे किसी भी चीज, आदत या व्यवहार का ही क्यों न हो, अंत में जाकर अनिष्टकारी ही साबित होता है। इसी बात को प्रफुल्ल त्रिपाठी ने स्वलिखित और निर्देशित नाटक ‘कुण्डली’ में बेहद गंभीर तरीके से रेखांकित किया है।
गोमती नगर स्थित संगीत नाटक अकादमी के बाल्मिकी रंगशाला में मंचित इस नाटक के पात्रों के मनोभावों की विचलित कर देने वाली अभिव्यंजना ने दर्शकों को झिंझोड़ दिया। नाटक के पात्र अपने रिश्तों और भीतरी उथल पुथल से लगातार संघर्ष करते दिखाई पड़े। नाटक के पत्रों ने उन बड़े मुद्दों को दशार्या जो हम सभी को प्रभावित करते हैं। कुल मिलाकर नाटक मानव मन की गहराई से पड़ताल करता दिखा। साथ ही उन जटिल भावनाओं और विचारों को उजागर करता दिखा जो हमें वह बनाते हैं जो हम हैं। बड़ी संवेदनशीलता और कौशल के साथ, त्रिपाठी एक सम्मोहक कथा का निर्माण करते हैं जो हमारे जीवन और समाज की छिपी सच्चाइयों को धीरे से उजागर करती है। वास्तव में मौलिक और अविस्मरणीय यह नाटक पर्दा गिरने के बाद भी लंबे समय तक लोगों के दिमाग में रहेगा। मंच पर आद्या घोषाल (कुण्डली), पुनीत मित्तल (साहिल), शानू आरव (राहुल), सजिनी समुर्दिका (निसंसला),यश ओझा (डॉक्टर सावंत) ने अहम भूमिका निभाई।

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