आस्था का आनन्द

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सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाये तो स्पष्ट होता है कि सम्पूर्ण जीवन प्रवाह एवं उसकी उपलब्धियां वस्तुत: श्रद्धा की ही परिणति है। मां अपना अभिन्न अंग मानकर नौ माह तक अपने गर्भ में बच्चे का सेवन करती है। अपने रक्त मांस को काटकर शिशु को पोषण प्रदान करती है। श्रद्धा का यह उत्कृष्ट स्वरूप है जिसका बीजारोपण मां बच्चे में संस्कार के रूप में करती है। नि:स्वार्थ भाव से उसको संरक्षण देती है। अनावश्यक भार कष्टों का जंजाल समझने का कुतर्क उठे तो नव शिशु प्रादुर्भाव ही संभव न हो सकेगा।

यह श्रद्धा ही है जिसके कारण बच्चा मां के सीने से चिपकने, स्नेह दुलार पाने के लिए लालायित रहता, रोता कलपता रहता है। मूक भाषा वाणी से रहित नवशिशु की श्रद्धा एक मात्र मां के ऊपर ही होती है। माता-पिता भी निश्छल हृदय से बच्चे के विकास के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। खाने, पीने स्वास्थ्य संरक्षण से लेकर शिक्षा दीक्षा के झंझट भरे सरंजाम जुटाते हैं। समग्र विकास ही उनका एक मात्र लक्ष्य होता है। तर्क तो हर बात को उपयोगिता की कसौटी पर कसता है।

इस आधार पर कसने पर माता पिता को हर दृष्टि से घाटा ही घाटा दिखायी पड़ेगा। बात तर्क की मान लीजाये तो बच्चे का अस्तित्व ही शंका में पड़ जायेगा। दृष्टिमात्र उपयोगितावादी हो जाये तथा यह परम्परा प्रत्येक क्षेत्र में चल पड़े तो परिवार एवं समाज विश्रृंखलित हो जायेगा। सभ्यता को अधिक दिनों तक जीवित नहीं रखा जा सकेगा।

श्रद्धा ही पारिवारिक जीवन को स्नेह सूत्र में बांधे रहती है। सहयोग करने अन्य सदस्यों के लिए अपने स्वार्थों का उत्सर्ग करने की प्रेरणा देती है। पारिवारिक विघटनों में इसका अभाव ही कारण बनता है। पति पत्नी के बीच मनमुटाव, सदस्यों के बीच टकराहट का कारण अश्रद्धा है। तर्क एवं उपयोगिता की कसौटी पर कसने पर तो वृद्ध माता-पिता का महत्व भी समझ में नहीं आता। वे भर के रूप में ही दिखाई पड़ते हैं।

किन्तु श्रद्धा दृष्टि है कि उनका कितना ऋण चढ़ा है। उनके आशीर्वाद स्नेह को पाने की कामना आजीवन बनी रहती है। यह भाव दृष्टि तो श्रद्धा की ही उपलब्धि है। जो सदा एक युवक को माता-पिता के समक्ष नतमस्तक किये रहती है। मनुष्य के व्यक्तित्व की ढलाई श्रद्धा की भट्ठी के सानिध्य में होती है। इस श्रद्धा तत्व की गरिमा को यदि स्वीकार किया जा सके तो यह भी मानना पड़ेगा कि उसे विकसित, परिष्कृत और परिपक्व करने के लएि आस्तिकता की मान्यता का अवलंबन लेना आवश्यक है।

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