अंतरराष्ट्रीय भागीदारी उत्सव : वियतनाम और स्लोवाकिया की प्रस्तुतियां बनी आकर्षण का केन्द्र

-देशभर से आयी हस्तशिल्प की अनमोल कलाकृतियां आगंतुकों को लुभा रही हैं

लखनऊ। जनजाति विकास विभाग उत्तर प्रदेश, उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान और उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित लोक नायक बिरसा मुण्डा की जयंती जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय भागीदारी उत्सव के तीसरे दिन रविवार को वियतनाम और स्लोवाकिया के कलाकारों की विशेष प्रस्तुतियां आकर्षण का केन्द्र बनी। इसके साथ ही गोमती नगर स्थित संगीत नाटक अकादमी उ.प्र., परिसर में स्थित कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित जनजाति स्वास्थ्य पर जागरुकता एवं समाधान विषयक संगोष्ठी के माध्यम से संदेश दिया गया कि डिजिटल क्रान्ति के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों तक शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जनजागृति लायी जा सकती है। इस दिशा में सरकार की ओर से उठाए गए महती कदमों की भी जानकारी दी गई। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव मुकेश कुमार मेश्राम ने हस्तशिल्प मेले का जायजा भी लिया।

विदेशी कलाकारों ने दी प्रस्तुति
श्वेता तिवारी के मंचीय संचालन में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम में वियतनाम से आए कलाकारों की प्रस्तुतियों ने सबका दिल जीत लिया। सबसे पहली प्रस्तुति में पुरुषों ने छाते और स्त्रियों ने बांस से तैयार बड़ी सी हैट के साथ सुंदर नृत्य संयोजन पेश किया। इसमें उन्होंने विवाह से पूर्व परस्पर सम्मान और प्रेम का प्रदर्शन किया। इसमें हैट जहां नारी के सम्मान को दशार्ती थी वहीं छाता, पुरुष द्वारा संरक्षण के भाव को पेश कर रहा था। इस क्रम में ट्रेडिशनल फोल्डिंग हैंड फैंन में लाल सफेद रंग का कपड़ा जोड़कर नृत्य किया गया। इसमें महिलाओं ने स्त्री के आंतरिक सौन्दर्य को बिम्बित किया। तीसरी प्रस्तुति में कलाकार स्तुति करते दिखे। इसमें वह पर्वत की देवी से सम्पन्नता की प्रार्थना करते दिखाए गए। अगली प्रस्तुति में छाते की तरह खुलने वाले फूलों के साथ कलाकारों ने नृत्य किया। इसमें युवतियों ने मंच पर फंतासी रचते हुए यह सम्प्रेषित किया कि वह भी देवी का अंश हैं। अंतिम प्रस्तुति में कलाकारों ने ढोल के साथ सुंदर संयोजन बनाते हुए प्रभावी नृत्य किया। यह नृत्य अच्छी फसल की कामना और समाज में प्रेम उल्लास के रूप में किया जाता है। नेशनल यूनिवर्सिटी आॅफ आर्ट्स एजुकेशन, वियतनाम से आए इस 12 सदस्यों वाले दल में 5 पुरुष और 7 महिलाएं थी। इस लोक कला प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व डॉ. दाओ डांग ने किया। इसके साथ ही दर्शकों की मांग पर एक बार पुन: स्लोवाकिया की प्रस्तुतियां भी हुईं। स्लोवाकिया का सांस्कृतिक दल मध्य योरोप जो पारंपरिक नृत्य लेकर आया है वह स्लोवाक, हंगेरियन, रोमानियाई, यहूदी, जिप्सी, रूथेनियन संगीत और नृत्य का प्रतिनिधित्व करता है। इफ्जू शिवेक डांस थिएटर की इस नृत्य प्रस्तुति का कलात्मक निर्देशन डुसन हेगली ने बखूबी संभाला। बताते चले कि इस दल ने न्यूयॉर्क से स्टॉकहोम, एविग्नन से सिडनी तक प्रभावी प्रस्तुतियां देकर प्रशंसा हासिल की है।

प्रादेशिक कला-संस्कृतियों का हुआ संगम
इस क्रम में बिहार का उरांव नृत्य, पश्चिम बंगाल का नटुआ नृत्य, केरल का इरुला नृत्य, छत्तीसगढ़ का गैण्डी नृत्य, हिमाचल प्रदेश का सिरमौरी नाटी-मास्क नृत्य, उत्तर प्रदेश का डोमकच-झूमर नृत्य और गुजरात के सिद्धि धमाल नृत्य भी पेश किए गए। गैंडी नृत्य में स्त्री और पुरुष कलाकारों ने बेहतर फसल की कामना के लिए किये जाने वाले नृत्य का प्रदर्शन किया। इसमें निशान और ढपरा के साथ सुंदर नृत्य संयोजन पेश किये गए। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल के सभी पुरुष कलाकारों ने नटुआ नृत्य में नटराज के तांडव जैसा जोशीला नृत्य किया। इसमें कलाकारों ने शरीर पर मिट्टी से विभिन्न पारंपरिक अल्पनाएं भी बनायी हुई थीं। ढोल ताशा, नगाड़ा, शहनाई के साथ यह प्रस्तुती दी गई। इन प्रस्तुतियों में विश्वजीत सिंह, जगन्नाथ कालिंदी, शिबासाहबुद्दीन, रतनलाल निषाद, देवदत्त, आशा देवी, शब्बीर सिद्दीकी के दलों ने प्रदर्शन कर दर्शकों की तालियां बटोंरी।
इसके साथ ही रविवार को उ.प्र. लोक एवं जनजाति कला संस्कृति संस्थान के निदेशक डॉ.अतुल द्विवेदी और जनजाति विकास विभाग उ.प्र. लखनऊ की उप निदेशक डॉ. प्रियंका वर्मा के संयोजन में संगोष्ठी हुई।
इसका विषय जनजाति स्वास्थ्य पर जागरुकता एवं समाधान था। इसमें आमंत्रित विद्वान लखनऊ विश्वविद्यालय के मानवशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. केया पाण्डेय ने कहा कि आदिवासियों तक शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जनजागृति लाने के लिए जरूरी है कि स्थानीय पुजारियों से लेकर स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों की मदद ली जाए। इसके साथ ही नजदीकी शिक्षण केन्द्रों से जनजातियों के बच्चों को जोड़ा जाए। जहां शिक्षण केंद्र न हो वहां आॅनलाइन शिक्षा पहुंचायी जाए। उन्होंने यह भी कहा कि जमीन सीमित है इसलिए लोगों को हुनर से जोड़ा जाएगा तो वह लोग अधिक आत्मनिर्भर बन सकेंगे। उन्होंने जनजाति के लोगों को शिक्षा के क्षेत्र में जोड़ने का मशविरा भी दिया। उन्होंने बताया कि वह लोगों को जागरुक कर रही हैं कि वह नवजात बच्चों की मालिश सूरजमुखी के तेल से करें। दरअसल बच्चे की त्वचा संक्रमण और जलन के प्रति संवेदनशील होती है। सूरजमुखी के तेल में लिनोलिक एसिड होता है जो संवेदनशील त्वचा वाले बच्चों के लिए मददगार होता है। संगोष्ठी आमंत्रित विद्वान राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उ.प्र. ब्लड सेल के जनरल मैनेजर डॉ. एस.पी. गंगवार ने कहा कि एक ओर जहां विकास प्रकृति से दूर ले जाता वहीं सभ्यता के उत्थान के लिए विकास समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना भी जरूरी है। ऐसे में बेहतर हो कि प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने वाले विकास को अपनाया जाए। उनके अनुसार प्रकृति सबको सीख देती है पर वर्तमान में लोग गूगल के शरण में जाकर प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि नशा, अशिक्षा और बीमारियां, विकास के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावटें हैं। ऐसे में जन भाषा में जनहित की बातें जनजातियों तक पहुंचानी होगी। इसके विपरीत उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी संस्कृति को आंख बंद करके अपनाने से पूरी लाइफ स्टाइल ही बदलती जा रही है जो बहुत घातक है। लोग पेट भर खा रहे हैं पर वह संतुलित भोजन नहीं कर रहे है। इसी कारण वह तनावग्रस्त भी हो रहे हैं। इसमें कमला देवी, राजकुमारी, अभिषेक सिंह, अरविंद कुमार, बेबी शाह, उपसना राणा, काजल अहिरवार, प्रियंका वर्मा, सुशीला कश्यप, दीपा सिंह, नीशू त्यागी सहित अन्य ने उत्साह के साथ भाग लिया।
उ.प्र. लोक एवं जनजाति कला संस्कृति संस्थान के निदेशक डॉ.अतुल द्विवेदी के अनुसार रविवारीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद सोमवार को भी उठाया जा सकेगा। इसके साथ ही जनजाति शिल्प एवं उत्पाद संभावनाएं विषय पर संगोष्ठी भी होगी। मेले में आए लोगों को बांस के सामान, महेश्वरी साड़ी, गर्म कपड़े, लकड़ी के खिलौने, ढोकरा शिल्प, सिक्की और मूंज का वर्क खासा पसंद आ रहा है। इसके साथ ही उन्हें चाट, अवधी व्यंजन, चाय, कठपुतली, जनजाति बुक स्टॉल भी लुभा रहे हैं।

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