इमरान का यू-टर्न

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दुनिया भर में अगर पाकिस्तान की पहचान ‘भिखारी देश’ की बनी है तो इसके लिए कोई और नहीं बल्कि पाकिस्तान का आतंक और कश्मीर के साथ प्रेम और भारत के साथ दुश्मनी जिम्मेदार है (पाकिस्तान सरकार और उसके प्रधानमंत्री भले ही यह ढींग हांकें कि भारत के साथ तब तक रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते हैं जब तक कि कश्मीर में धारा 370 को बहाल नहीं किया जाता, लेकिन पाकिस्तान के जो आर्थिक हालात हैं उनमें अगर इमरान खान ने यह नीति नहीं बदली तो वह दिन दूर नहीं जब पाकिस्तान असफल हो जायेगा और वहां गरीबी, बेकारी, असमानता, कुपोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की दुर्दशा जैसी स्थितियां इतनी विकट हो जायेंगी कि सिंधु और बलूचिस्तान की अवाम पाकिस्तान से आजादी के लिए पूरी तरह विद्रोह पर उतर आयेगी।

दरअसल मुट्ठी भर हुक्मरानों और वर्दी की तानाशाही के शिकंजे को नागरिक उन स्थितियों में बहुत दिनों तक बर्दास्त नहीं करेंगे जबकि उनको घुट-घुटकर जीने के लिए मजबूर न होना पड़े। हां आर्थिक संपन्नता ऐसी चीज है कि अगर यह सुलभ हो जाये तो जरूर अवाम अपने हुक्मरानों की कुछ गलत हरकतों को माफ कर देती है। पाकिस्तान में सेना, कट्टरपंथी तंजीमों और राजनीतिक वर्ग के बीच जो नापाक गठजोड़ चल रहा है उसमें जनता पिस रही है और पाकिस्तान दिनोंदिन गर्त में जा रहा है।

पाकिस्तान अपनी आजादी के बाद से अब तक भारत के साथ चार युद्ध और तीन-चार दशक से छद्म युद्ध कर रहा है, हमेशा पराजित हुआ है लेकिन हर दिन पाकिस्तान के बद दिमाग सियासतदान भारत पर हमले की धमकी देते रहते हैं। कट्टरपंथियों और मूर्ख नेताओं की इन कोरी धमकियों के पीछे एक उद्देश्य होता है कि भारत के साथ युद्ध जैसा माहौल बनाये रखा जाये। इससे कट्टरपंथियों, नेताओं और सैन्य प्रातिष्ठान को बहुत फायदा होता है।

पाकिस्तान को बर्बादी की कगार पर पहुंचाने वाले इस वर्ग के दबाव में आकर ही इमरान खान को भारत के साथ व्यापार शुरू करने के फैसले से पलटी मारनी पड़ी। एक ऐसे दौर में जब पाकिस्तान में चीनी, आटा, टमाटर सहित तमाम मौसमी सब्जियों के दाम आसमान पर हैं, कपास की कमी के कारण वस्त्रोद्योग संकटग्रस्त है और इसके आयात के लिए पाकिस्तान के पास विदेशी मुद्रा खर्च करने को लेकर भी हाथ बंधे हुए हैं।

ऐसे में पाकिस्तान की इकोनॉमिक कोआर्डिनेशन कमेटी का भारत के साथ ट्रेंड शुरू करने का फैसला पाकिस्तान और वहां की जनता के हित में था, लेकिन इमरान खान अपने इस फैसले पर टिक नहीं पाये। उनको विपक्ष, सैन्य प्रतिष्ठिान और अपनी ही पार्टी के कट्टरपंथियों के सामने झुकना पड़ा। भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार में पाकिस्तान को बहुत फायदा हो सकता है।

वहां आटा, चीनी, टमाटर व हरी सब्जियों के दाम काफी नीचे आ जाते, वस्त्रोद्योग को सस्ता कच्चा माल मिलता जिससे रोजगार के साथ ही निर्यात व्यापार बढ़ाने का मौका भी मिलता। लेकिन पाकिस्तान के बदमिजाज नेताओं को कौन समझाये। इनका आर्थिक ज्ञान भैंस एवं गधे बेचकर तरक्कीकरने तक ही सीमित है और जब तक इमरान खान ऐसे बददिमाग नेताओं से घिरे रहेंगे तब तक पाकिस्तान की जनता गरीबी और महंगाई की चक्की में पिसती रहेगी।

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