‘नीलकंठ निराला का’ में दिखी मानवीय संवेदना

कलामंडपम सभागार में हुआ नाटक का मंचन
लखनऊ। कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाएं केवल भावनाओं ही नहीं बल्कि संघर्ष, विद्रोह और मानवीय संवेदनाओं का भी प्रतीक रही हैं। रामेश्वर सिंह कश्यप के लिखे और संजय उपाध्याय के निर्देशन में नाटक नीलकंठ निराला का मंचन भारतेन्दु नाट्य अकादमी में अध्ययनरत द्वितीय वर्ष के छात्रों ने कलामंडपम सभागार कैसरबाग में किया।
नीलकंठ निराला नाटक ने महाप्राण निराला के जीवन और कृतित्व को मंच पर जीवंत किया। नीलकंठ निराला में केवल निराला के जीवन की घटनाओं को ही प्रस्तुत नहीं किया बल्कि उनके विचारों और संघर्षों को भी उजागर करता है। यह नाटक उनके साहित्यिक जीवन के साथ साथ उनके व्यक्तिगत संघर्षों जैसे गरीबी, पारिवारिक त्रासदी, और समाज द्वारा की गई उपेक्षा को प्रभावशाली ढंग से चित्रित करता है। इसमें निराला की कविता, विचारधारा और उनके विद्रोही स्वभाव को मुख्य रूप से उभारा है। निराला ने अपनी कलम से साहित्य को एक नई दिशा दी। निराला का जीवन इस बात का उदाहरण है कि कैसे संघर्ष और चुनौती से भरे जीवन में भी साहित्य और कला के माध्यम से सृजनात्मकता की ज्योति प्रज्ज्वलित रखी जा सकती है। मंच पर प्रियांक कठेरिया, प्रदीप यादव और दीपचंद ने अभिनय किया।

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