नई दिल्ली। सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि अमेरिका के सामान्य तरजीही व्यवस्था (जीएसपी) के तहत कुछ भारतीय उत्पादों को आयात शुल्क में मिलने वाली छूट को समाप्त किए जाने के कदम से भारत के निर्यात पर बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
वाणिज्य सचिव अनूप वाधवन ने कहा कि
वाणिज्य सचिव अनूप वाधवन ने कहा कि भारत जीएसपी के तहत अमेरिका को 5.6 अरब डॉलर के सामानों का निर्यात करता है, जिसमें से केवल 1.90 करोड़ डॉलर मूल्य की वस्तुएं ही बिना किसी शुल्क वाली श्रेणी में आती हैं। वाधवन ने कहा कि भारत के व्यापक और उचित व्यापार पैकेज पर काम करने के बावजूद अमेरिका ने 60 दिन बाद तरजीही व्यापार लाभ को खत्म करने के अपने फैसले को लागू करने का निर्णय किया है। उन्होंने कहा कि पैकेज में चिकित्सा उपकरणों, डेयरी उत्पादों और कृषि उत्पादों सहित द्विपक्षीय व्यापार से जुड़े सभी क्षेत्र शामिल हैं। उनकी यह प्रतिक्रिया अमेरिका के राष्ट्रपति के उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा है कि वह भारत को तरजीही व्यापार के लिए दिए गए दर्जे को समाप्त करेंगे।
सचिव ने कहा कि विकसित देश
सचिव ने कहा कि विकसित देश विकासशील देशों को जीएसपी के तहत गैर-पारस्परिक एवं बिना किसी भेदभाव के आधार पर लाभ उपलब्ध कराते हैं। चिकित्सा उपकरणों एवं डेयरी उत्पादों के संबंध में अमेरिका की मांग पर उन्होंने कहा कि भारत तार्किक समाधान का इच्छुक है लेकिन देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं और जरूरतों के बीच संतुलन कायम किए जाने की जरूरत है। वाधवन ने कहा, इन दोनों मुद्दों (चिकित्सा उपकरण एवं डेयरी) के कुछ ऐसे पहलू हैं जिनपर बातचीत नहीं की जा सकती है। चिकित्सा उपकरणों के संदर्भ में हम किफायत और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी आवश्यकताओं के साथ समझौता नहीं कर सकते।
भारत, अमेरिका को अपने बाजारों
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और तुर्की को दिए गए तरजीही व्यापार वाले देश के दर्जे को समाप्त करने का इरादा जताया है। उन्होंने इसके लिए दलील दी है कि भारत, अमेरिका को अपने बाजारों तक बराबर एवं उचित पहुंच प्रदान करने को लेकर आश्वस्त करने में विफल रहा है। अमेरिका के इस कदम को द्विपक्षीय रिश्तों के लिहाज से बड़ा झटका माना जा रहा है। अमेरिकी दावे के जवाब में सचिव ने कहा कि अमेरिकी आपूर्तिकर्ताओं की वास्तविक जरूरतों को पूरा करने के लिए उचित संतुलन कायम किए जाने की जरूरत है। स्टेंट जैसे चिकित्सा उपकरणों की कीमत घरेलू बाजारों में काफी अधिक थी, ऐसे में भारत ने अधिकतम संभव कीमत तय की। अमेरिकी कंपनियां इस कदम पर चिंता जता रही हैं।