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रंग-ए-अवध में दिखी कथक की मोहक प्रस्तुति

 

संस्कृति कथक संध्या में दो पुस्तकों का हुआ विमोचन

लखनऊ। संस्कृति द कल्चर आॅफ सोसाइटी संस्था की ओर से पुस्तक विमोचन समारोह का आयोजन, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के वाल्मीकि रंगशाला में मंगलवार को किया गया। इस अवसर पर आकर्षक कथक प्रस्तुति भी हुई। इस समारोह में मुख्य अतिथि भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. मांडवी सिंह थीं। इसके साथ ही संरक्षक के रूप में पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन और समारोह अध्यक्ष के रूप में भातखंडे सम विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. पूर्णिमा पांडे ने पुस्तकों को संग्रहणीय और शोधार्थियों के लिए उपयोगी बताया।
इस अवसर पर डॉ. सुरभि शुक्ला के नृत्य निर्देशन में रंग-ए-अवध नाम से मनभावन कथक प्रस्तुति देखने को मिली। इस सूफी नृत्य संरचना में ए री सखी और छाप तिलक सब छीनी पर डॉ. सुरभि शुक्ला सहित वैशाली श्रीवास्तव, रश्मि पाण्डेय, वर्तिका गुप्ता, समृद्धि मिश्रा, सताक्षी मिश्रा और पूजा तिवारी ने प्रभावी नृत्य कर प्रशंसा हासिल की। इसमें रूपसज्जा शहीर और प्रकाश संचालन राजू कश्यप की रही।

डॉ. सुरभि शुक्ला की पुस्तक का नाम कथक नृत्य के लखनऊ घराने के विकास में गुरु विक्रम सिंह का योगदान है। डॉ. सुरभि शुक्ला ने अपनी पुस्तक के संदर्भ में बताया कि श्रीलंका मूल के गुरु विक्रम सिंह ने लखनऊ आकरए तत्कालीन कथकाचार्य गुरु अच्छन महाराज जी से कथक नृत्य की शिक्षा ली थी। गुरु विक्रम सिंह ने साल 1955 से 1975 तक भातखंडे संगीत संस्थान में कथक गुरु के रूप में प्रशिक्षण दिया। उनके लोकप्रिय शिष्यों में बीएचयू नृत्य संकाय की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. रंजना श्रीवास्तव, भातखंडे सम विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रो. पूर्णिमा पाण्डेय, कथक केन्द्र लखनऊ के पूर्व गुरु सुरेन्द्र सैकिया जैसी कई हस्तियां शामिल है। साल 1978 से 1987 तक गुरु विक्रम सिंह ने लखनऊ स्थित कथक केन्द्र के निदेशक के रूप में नवांकुरों को संवारा। कथक केन्द्र में उनके लोकप्रिय शिष्यों में डॉ. कुमकुम आदर्श, पाली चन्द्रा, डॉ. राकेश प्रभाकर, ओम प्रकाश महाराज सहित अन्य शामिल हैं। डॉ. सुरभि शुक्ला ने बताया कि इस पुस्तक के शोधकार्य के लिए उन्होंने श्रीलंका स्थित गुरु विक्रम सिंह के निवास स्थल और कार्यस्थल तक का भ्रमण किया। यह शोध कार्य डॉ. सुरभि ने बीते सात वर्षों में किया है। इस पुस्तक में पचास से अधिक मूल चित्रों को भी प्रकाशन किया गया है। डॉ. सुरभि के अनुसार गुरु विक्रम सिंह ने लगभग तीन दशकों तक लखनऊ कथक ड्योढ़ी की कमान संभाली। दूसरी पुस्तक डॉ. राजीव शुक्ला की एकास्टिक एनालिसिस आॅफ सिलेबल्स आॅफ तबला है। इस पुस्तक में तबले की ध्वनि के वैज्ञानिक पक्षों को विस्तार के साथ उल्लेख किया गया है। इस पुस्तक में तबले के आकार और अंगों का उसकी ध्वनि पर पड़ने वाले प्रभावों का गंभीरता पूर्वक अध्ययन किया गया है। इस शोध का आधार पूर्ण रूप से वैज्ञानिक रखा गया है। इसमें विशेष रूप से साल 1920 में डॉ. सीवी रमन द्वारा निष्पादित सिद्धांत का विस्तृत विश्लेषण किया गया है जो कि अपने आप में प्रथम प्रयास है। डॉ. राजीव शुक्ला ने बताया कि उन्होंने यह वृहद शोधकार्य बीते पांच वर्षों में किया है।

 

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