तीन दुर्लभ संयोग में देवउठनी एकादशी आज, शुरू होंगे मांगलिक कार्य

लखनऊ। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान एकादशी कहते हैं। साथ ही इसे देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। जिसका हिन्दू धर्म में बहुत अधिक महत्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं और इसी दिन से शादी, सगाई और मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और हर तरह की समस्याओं का समाधान हो जाता है। धरती के सभी सुख मिलते हैं और मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति होती है। पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 11 नवंबर को शाम 06 बजकर 46 मिनट पर शुरू होगी और 12 नवंबर को दोपहर बाद 04 बजकर 14 मिनट पर खत्म होगी। उदयातिथि के अनुसार देव उठनी एकादशी 12 नवंबर को ही मनाई जाएगी और 13 नवंबर को एकादशी व्रत का पारण किया जाएगा।

देवउठनी एकादशी शुभ योग
पंचांग के अनुसार, देवउठनी एकादशी पर हर्षण योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बन रहे हैं। ये तीनों योग बेहद शुभ हैं, इन योगों में किए काम या पूजा लोगों को प्रसन्नता प्रदान करती हैं, यानी इनमें किए कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

देवउठनी एकादशी पूजा विधि
देवउठनी एकादशी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान ध्यान करें और भगवान विष्णु के व्रत का संकल्प लें। मंदिर की साफ-सफाई करें और भगवान विष्णु, धन की देवी माता लक्ष्मी का स्मरण करें। भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं, हल्दी या गोपी चंदन का तिलक लगाएं। भगवान विष्णु को पीले फूलों की माला, मिठाई, फल और तुलसी के पत्ते चढ़ाएं। भगवान विष्णु के ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय या कोई अन्य मंत्र जपें, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और आरती गाएं। इसके बाद दिनभर व्रत रहें, किसी गरीब या ब्राह्मण को भोज कराएं, दक्षिणा दें। रात में भगवान का भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। सुबह पूजा पाठ के बाद पारण समय में व्रत तोड़ें।

क्या है मान्यता
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एकादशी व्रत करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह भी माना जाता है कि जो व्यक्ति एकादशी का व्रत रखता हैं, उसे मोक्ष मिलता है, उसके धन में वृद्धि होती है। देवउठनी एकदशी, प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा से सभी की मनोकामना पूरी होती है। इस दिन दान-पुण्य का भी विधान है।

शुरू होंगे मांगलिक कार्य
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि हरिशयन एकादशी के बाद भगवान विष्णु के योग निद्रा में जाने से सभी प्रकार के मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं। देवउथान एकादशी के दिन भगवान विष्णु के जागने के साथ ही सभी मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। इस साल 12 नवंबर को देवउथान एकादशी के साथ ही मांगलिक कार्यों की शुरूआत होगी, और विवाह के शुभ मुहूर्त 16 नवंबर से शुरू हो रहे हैं। नवंबर और दिसंबर में विवाह के लिए कुल 18 शुभ लग्न हैं।

चार दिन रहेगी विशेष तिथियां
22 और 23 नवंबर के बाद 9 और 10 दिसंबर की तिथियां विशेष रूप से अत्यधिक शुभ मानी गई हैं. इस दौरान पूरे दिन और रात विवाह के लिए उत्तम मुहूर्त उपलब्ध रहेंगे, जो इसे एक आदर्श समय बनाते हैं। दिसंबर की 14 तारीख को केवल दिन का समय ही विवाह के लिए अनुकूल है, क्योंकि शाम के बाद खरमास शुरू हो जाएगा, जिसके कारण मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है।

विवाह मुहूत:
नवंबर-17, 18, 22, 23, 24, 25, 26, 27
दिसंबर-1, 2, 3, 4, 5, 6, 9, 10, 11, 13, 14
जनवरी-16, 17, 18, 19, 20, 21, 22, 23, 24, 26, 29, 30
फरवरी-1, 2, 3, 6, 7, 8, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18, 19, 20, 21, 22, 23, 24, 25 को लगन का शुभ मुर्हूत है।

शुभ मुहूर्त
शुभ मुहूर्त में विवाह करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। भारतीय समाज में बिना मुहूर्त के विवाह करना अशुभ माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में कठिनाइयां आ सकती हैं। इसी वजह से शुभ मुहूर्तों में विवाह करने का प्रचलन है और विवाह सीजन के दौरान लोग ज्योतिषाचार्यों से परामर्श कर मुहूर्त निकालने पर विशेष जोर देते हैं।

16 दिसंबर से खरमास

देवउठनी एकादशी का पर्व 12 नवंबर को रहेगा। इस दिन घरों में देव उठाए जाएंगे। नवंबर और दिसंबर के पहले पखवाड़े में लग्न मुहूर्त अधिक रहेंगे। इसके बाद 16 दिसंबर से सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास की शुरूआत हो जाएगी, जो 15 जनवरी 2025 मकर संक्रांति तक रहेगा। इस दौरान मांगलिक कार्यों पर विराम रहेगा। 15 जनवरी को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास समाप्त होगा और फिर से लग्न मुहूर्त की शुरूआत हो जाएगी।

तुलसी विवाह कल, विधि-विधान से होगी पूजा-अर्चना


लखनऊ। तुलसी विवाह पर्व हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर मनाया जाता है। यह त्योहार ग्यारहवें चंद्र दिवस यानी प्रबोधिनी एकादशी से शुरू होता है और पूर्णिमा की रात्रि या कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इस दिन भगवान विष्णु के विग्रह स्वरुप शालीग्राम तथा देवी तुलसी का विवाह सम्पन्न करने का विधान है। द्वादशी तिथि की शुरूआत 12 नवंबर को शाम 4 बजकर 4 मिनट पर होगी, जो अगले दिन यानी 13 नवंबर को दोपहर 1 बजकर 1 मिनट पर समाप्त होगा। उदयातिथि पड़ने के कारण तुलसी विवाह 13 नवंबर को मनाया जाएगा।

तुलसी विवाह महत्व
तुलसी विवाह हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इसे देवउठनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है इस दिन भगवान विष्णु अपनी चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, इन चार महीनों यानी चातुर्मास में किसी भी प्रकार का शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। तुलसी विवाह से ही सभी मांगलिक कार्यों की शुरूआत होती है। ऐसी मान्यता है कि जो घर में तुलसी विवाह एवं पूजा का आयोजन करता है, उसके घर-परिवार से क्लेश तथा विपत्तियां दूर हो जाती हैं, साथ ही धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।

तुलसी विवाह पूजा विधि
भगवान विष्णु और तुलसी विवाह सामान्य हिंदू रीति-रिवाज के सामान ही किया जाता है। तुलसी विवाह के दिन उपवास रखा जाता है जो विवाह संपन्न होने के बाद खोला जाता है। तुलसी विवाह में फूल या साड़ियों से मंडप तैयार किया जाता है, फिर तुलसी के पौधे और भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है, उसके बाद उन्हें फूल माला पहननाई जाती है। तुलसी विवाह के दौरान तुलसी जी का सोलह सिंगार किया जाता है। उन्हें गहने, लाल बिंदी साड़ी आदी से सजाया जाता है। वहीं, भगवान विष्णु के शालिग्राम को धोती पहनाई जाती है, फिर तुलसी जी और भगवान विष्णु को धागे से बांधा जाता है। आपको बता दें कि तुलसी विवाह पुजारी और सभी आयु की महिलाओं द्वारा सम्पन्न कराया जा सकता है। तुलसी विवाह का समापन भक्तों द्वारा नवविवाहित युगल पर चावल और सिंदूर की वर्षा के साथ होता है। विवाह संपन्न होने के बाद सभी भक्तों को भोग वितरण किया जाता है।

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