हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर राजभाषा हिंदी: पुनर्विचार विषय पर संगोष्ठी का आयोजन
लखनऊ। भाषा विभाग उत्तर प्रदेश शासन के नियंत्रणाधीन उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान एवं पं. दीनदयाल उपाध्याय राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय राजाजीपुरम, लखनऊ (हिन्दी विभाग) के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर महाविद्यालय के अटल बिहारी वाजपेयी सभागार में राजभाषा हिंदी: पुनर्विचार विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित, अति विशिष्ट अतिथि पद्मश्री डॉ. विद्याबिन्दु सिंह, विशिष्ट अतिथि प्रो. हरिशंकर मिश्र,कार्यक्रम के अध्यक्ष प्राचार्य प्रो. रमेश चन्द्र वर्मा, भाषा संस्थान के प्रभारी दिनेश कुमार मिश्र, अंजू सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रश्मि शील तथा हिन्दी विभाग प्रभारी डॉ. सुरंगमा यादव ने विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन कर संयुक्त रूप से किया। तत्पश्चात मनीषा अवस्थी, दृष्टि चौरसिया, मुस्कान राठौर तथा सलोनी प्रजापति ने भावपूर्ण स्वर में सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। मुख्य अतिथि प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमें हिन्दी दिवस के स्थान पर राजभाषा दिवस कहना चाहिए। हिंदी को राजभाषा बने 75 वर्ष पूरे हो गए, अत: आज हम राजाभाषा का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी 75 वर्ष से संघर्षरत हैं, अत: अब ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे हिंदी को पूरे देश में लागू किया जा सके। इसके साथ- साथ स्वतंत्र भाषा मंत्रालय, भारतीय भाषा विश्वविद्यालय की स्थापना तथा स्नातकोत्तर स्तर पर पाठ्यक्रम में तुलनात्मक भाषा पाठ्यक्रम चलाए जाने की आवश्यकता पर भी उन्होंने बल दिया। अति विशिष्ट अतिथि पद्मश्री डॉ. विद्याबिन्दु सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी भाषा के अनेक रूप हैं, अनेक बोलियाँ हैं, उसने अनेक भाषाओं के बीच अपनी प्रतिष्ठा को बनाया है। हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है, हिंदी का सूर्य कभी अस्त नहीं होता,क्योंकि हिंदी को बोलने वाले विश्व के कोने -कोने में बसे हुए हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आॅनलाइन कार्यों में हिंदी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए तथा न्यायालय की भाषा के रूप में भी हिंदी को प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए।
प्रो. हरिशंकर मिश्र ने अपने विचार व्यक्त करते हैं कहा कि हिंदी एक समृद्ध भाषा है उसके समृद्ध साहित्य की सुदीर्घ परंपरा है। हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा है। उसमें जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा जाता है, इसलिए विद्यार्थियों को भाषा पर अधिकार प्राप्त करने के लिए लिपि, व्याकरण, वर्तनी एवं उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए। प्राचार्य प्रो. रमेश चंद्र वर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हिंदी में श्रेष्ठ साहित्य की रचना होनी चाहिए। साहित्य के साथ- साथ ज्ञान- विज्ञान की पुस्तकों का लेखन तथा अनुवाद कार्य भी हिंदी में होना चाहिए।हिंदी में रोजगार की अपार संभावनाएँ हैं,अत: विद्यार्थियों को हिंदी भाषा पर अधिकार प्राप्त करने का प्रयास करते हुए हिन्दी का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए। डॉ. विपिन कुमार शुक्ला ने अपने वक्तव्य में हिंदी के राष्ट्रभाषा न बन पाने के कारणों पर विस्तार से प्रकाश डाला।