कैफी आजमी एकेडमी में जनवादी लेखक संघ लखनऊ द्वारा आयोजित किया गया
लखनऊ। अनिल कुमार श्रीवास्तव के गजल संग्रह ‘लहरों पे घर’ का लोकार्पण कैफी आजमी एकेडमी में जनवादी लेखक संघ लखनऊ द्वारा आयोजित किया गया। लोकार्पण के बाद अनिल ने अपने आत्मकथ्य में अपने बचपन से जुड़ी यादें साझा कीं। उन्होंने अपने संग्रह से कुछ गजलें सुनाईं।
इस अवसर पर रेशमा परवीन ने कहा कि अनिल श्रीवास्तव हमारी कैफियतों के शायर हैं। इस गजल संग्रह के नाम ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। पूरे संग्रह में निराशा नहीं दिखती। एक उम्मीद दिखती है। गजल की खूबी यही है कि बड़ी से बड़ी बात को दो पंक्तियों में कह दिया जाए। अपनी गजलों से वो बड़ी से बड़ी बात बड़े सादा तरीके से कह देते हैं। गजल हमारी सारी जिÞंदगी को समेटती है। आज का इंसान जिस बेचैनी, अकेलेपन से गुजर रहा है, उसको बेहद खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है। अनिल आॅप्टमिस्ट हैं,वो परेशानियों से घबराते नहीं हैं ।उन्होंने कुछ चुनिंदा शेर के माध्यम से अपनी बातों को विस्तार दिया। उसके बाद ओम प्रकाश नदीम मंच पर आए और उन्होंने कहा कि अनिल जी ने संग्रह में न भूमिका लिखी है और न किसी की टिप्पणी ही शामिल की है। मैं तो शीर्षक पर ही बहुत देर रुका रहा। इनका चिंतन इसी तरह का है। मुझे ये बात अच्छी लगी कि पाठक बिना किसी पूर्वाग्रह के इस किताब को पढ़ता है। यह वास्तव में हिन्दी गजल संग्रह है। आम जन की पक्षधरता मौजूद है। इंसानी जज्बात शायर के लिए बहुत महत्व रखते हैं। कथ्य का नयापन मिलता है। उन्होंने विरोधाभास अलंकार का एक शेर उदाहरण स्वरूप सुनाया ।
इसके पश्चात वरिष्ठ आलोचक नलिन रंजन सिंह ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि अनिल भाई अजातशत्रु हैं। एक कमिटेड साथी हैं और इतने विनम्र हैं कि सभी के प्रिय हैं। अनिल जी अपने व्यवहार से सबको जीत लेते हैं। छंदबद्ध और छंदमुक्त की बहस बहुत पुरानी है। एक समय था कि गोपाल प्रसाद नीरज ने खूब गीतिकाएँ लिखीं ,लेकिन वो तुक में थीं। दुष्यंत कुमार ने हिन्दी गजल को नया मुकाम दिया कि कैसे बड़ी से बड़ी बात की जाए।
इसके पश्चात सुभाष राय ने कहा कि चिड़िया जो सुबह सुबह चहकती है। अगर उनसे कहे कि वे मीटर में गाए तो क्या वे गा पाएँगी। इसके बाद प्रकाशक हरे प्रकाश उपाध्याय ने कहा कि हम लोग साथ बैठे और एक-एक शेर पर डिस्कस किया। अध्यक्ष राजेंद्र वर्मा ने कहा कि आज अनिल जी का दिन है, उससे ज्यादा उनकी किताब का दिन है। सबसे बड़ी बात है कि जैसा सोचते हैं, वैसा ही लिखते हैं, ज्यादा कलाबाजी के चक्कर में नहीं पड़ते। कविता एक विधा है जो एक विशिष्ट लय पर चलती है। पहिया तभी चलता है जब गोल होता है। गजल की लय थोड़ा भिन्न है कविता की लय से। आंतरिक लय से बाहरी लय अलग है। धन्यवाद ज्ञापन आभा खरे ने किया। कार्यक्रम का संचालन सलमान खयाल ने किया ।