कला वीथिला कला स्रोत आर्ट गैलरी में लगी प्रदर्शनी
लखनऊ। मैं गूंगा बनकर अभिनय नहीं कर सकता। मैं अपनी आंखों पर पट्टी बांधे धृतराष्ट्र को स्वीकार नहीं कर सकता हूं। आँखों में रोशनी होने के बाबजूद गांधारी की आंखों पर पट्टी बांधना पति के प्रति प्रेम नहीं मना सकता। मैं बहरा होने का नाटक नहीं कर सकता। इसलिए बोलने,कहने और सुनाने के लिए कई भाषाएँ बदलता रहा और साथ ही नई-नई भाषाएँ भी सीखता रहा। कि कौन सी कलात्मक भाषाएं। उनके माध्यम से जो कहा जा सकता था सीखा, फिर एक ऐसी भाषा की जरूरत महसूस हुई जिसके माध्यम से वह सब कहा जाए जो अब तक नहीं कहा जा सका। मुझे यह भाषा मनुष्य की सबसे पहली और सबसे प्राचीन भाषा के रूप में मिली, जिसे चित्रकला कहते हैं। आदिमानव ने जीवन के अनुभवों को संप्रेषित करने के लिए इस भाषा का प्रयोग और उपयोग किया। वैसे ही मैं भी कर रहा हूँ। यह प्रकृतिक भाषा और वंशावली से बनी चट्टानों का कारण अधिक समृद्ध और संप्रेषणीय है। मैं इसी भाषा में पिछले 30 वर्षों से कह रहा हूँ। जो कहना चाहता हूं।
उक्त बातें लखनऊ स्थित कला वीथिला कला स्रोत आर्ट गैलरी में अपने 21 कलाकृतियों (7 कैनवस पेंटिंग और 14 ब्लैक एंड व्हाइट रेखांकन) की एकल प्रदर्शनी बिहाइंड द पीपल के दौरान जबलपुर, मध्य प्रदेश के कलाकार विनय अंबर ने कही। अम्बर एक बेहतरीन चित्रकार के साथ-साथ सजग संस्कृतिकर्मी, कवि भी हैं। बेबाक अपनी बात लोगों के सामने भी पेश करते हैं, इसके लिए वे कला को ही माध्यम से बनाते रहे हैं। प्रदर्शनी का उद्घाटन वरिष्ठ कलाकार जय कृष्ण अग्रवाल, उमेश सक्सेना, वरिष्ठ फोटोग्राफर अनिल रिसाल सिंह और नीरज केला ने दीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर कला, साहित्य व रंगमंच से जुड़े लोग व कलाप्रेमी, छात्र उपस्थित रहे।
विनय अंबर से जब भी चित्रकला के संदर्भ में बात करो तो वे बात करते हुए आप से ही सवाल करने लगते हैं। उनके सवालों में इतिहास, भूगोल, अर्थ, संस्कृति ,धर्म-जाति और राजनीति होती हैं। उनकी बातों में मानवीय उत्पीड़न के तमाम उदाहाण मौजूद होते हैं। उन्हें सुनकर या बात करके कतई नहीं लगेगा कि आप किसी चित्रकार से बात कर रहे हैं। लेकिन उनसे बात करके उनके चित्र देखेंगे तो आपको उनके चित्रों में दिख जायेगा कि वे ये दुनियाई बातें क्यूँ करते हैं। उनके सवाल कितने जायज और जरूरी होते हैं। वे सिग्नेचर पेंटिंग जैसी प्रक्रिया को ध्वस्त करते दिखते हैं। माध्यम को उसकी पोलिटिक्स के साथ प्रयोग में लाते हैं। उनके केनवास लगभग सपाट सतह पर विषय की गंभीरता को ज्यादा महत्व देते है। वे अपनी ड्राईंग को प्रिंट (छापाकला ) की तरह रचते हैं। जो उनकी समझ और कौशल को प्रदर्शित करता है।
उनका कहना है कि देश और दुनियाँ में मनुष्य के खिलाफ हो रहे षडयंत्र को समझना बहुत जरूरी है। उनकी कला का कच्चा माल मनुष्य की करुणा एवं उसका संघर्ष है। विनय अंबर की कोशिश होती है कि उनके चित्र किसी जन कवि की कविताओं की तरह सरल हो। दर्शक उन्हें देखने के साथ सुन भी सके और उनकी पीड़ाओं और संवेदनाओं को महसूस भी कर सकें। और अपनी तरह से उस चित्र में निहित कविता को गा भी सके। अंबर चित्रकला की दुनियाँ में शौकिया नहीं आये । वे अखबारी दुनियाँ में लगभग एक दशक के ऊपर काम करके दुनिया देखकर और चित्रकला की विधिवत शिक्षा ग्रहण करके लगभग 30 साल से चित्रकर्म के पथिक हैं। उन्होंने तमाम सामाजिक सांस्कृतिक आन्दोलनों में अपनी हिस्सेदारी की है।
कविता को लेकर उन्होंने नई तरह से काम भी किया हैं। उनके बनाये कविता पोस्टर बहुत महत्वपूर्ण है। वे यहाँ चित्रकला को लेकर एक नया प्रयोग करते हैं और उसे नया रूप देते हैं। वे अखवार के कागज पर बहुत काम कर चुके हैं। भविष्य में अखबार पर बनाये चिंत्रों की एक श्रृंखला अल्टेरनेट मीडिया के नाम से जल्द ही प्रदर्शित होगी ।
अम्बर के कैनवस पर चटकिले रंगों और मोटी रेखाओं से बनी आकृतियों में सारे द्वंदात्मक विषय अपना रूप ले लेते हैं।और मनुष्य की मुक्ति के गीत गाने लगते हैं। जीवन के अनुभव चित्रों की तरह होते हैं।विषय भी वहीं से आपके साथ चलते हैं। होश संभालने से लेकर मनुष्य बनने तक। अम्बर कहते हैं कि मैंने समाज की सभी धार्मिक अवधारणाओं को बिखरते देखा है। सांस्कृतिक सामंती, जातिगत अवधारणाएं अधिकाधिक मनुष्य के विरुद्ध खड़ी नजर आईं। सभी सामाजिक, सांस्कृतिक, वैचारिक और राजनीतिक आंदोलनों से उपजे अनुभवों में मानवता के निरंतर विलुप्त होने का अनुभव मुझे एक विषय के रूप में सबसे अधिक परेशान करता रहा है। इसलिए चाहे वह कागज हो या कैनवास, स्याही हो या रंग, यह अनुभव मेरे विषय के रूप में उतरता रहा है। मनुष्य के जीवन संघर्ष को हमेशा उस सौंदर्य बोध से ऊपर रखा जो एक राजनीतिक विचार दर्शन ने मेरे भीतर पैदा किया। मेरे चित्र अलंकारिक हैं। मेरे कैनवस पर आकृतियां होने से मैं मानवीय संवेदना और करुणा के करीब रहता हूँ। रिश्तों के प्रति सजग होता हूँ। चित्रों में उड़ती मछलियां और चंद्रमा सभी मानवीय आकृतियों के साथ समाज मे व्याप्त मिथकों को तोड़ते हैं। मैं उस सत्य की खोज करता हूँ जो सम्पूर्ण मानवता के पक्ष में खड़ा हो इसलिए मैं मनुष्य के पक्ष में चित्र बनाता हूँ। मैं पेंटिंग्स में सारंगी के तारों की तरह गंभीर स्वर पैदा करने की कोशिश करता हूँ।पंडित रविशंकर और उस्ताद अली अकबर खान की उस जोशीली जोड़ी की तरह, जो देखने में जितनी मधुर थी, सुनने में भी उतनी ही मधुर थी। कुमार गंधर्व के गायकी वाले हिस्से होने चाहिए, मालिनी राजुरकर का टेप तेज होना चाहिए। मैं चाहता हूं और कोशिश करता हूं कि मेरी पेंटिंग्स में प्रेमचंद और तुर्गनेव की कहानी जैसी सरलता हो। पाश, शिम्बोरश्का, धूमिल नवारूण, सर्वेश्वर, पाब्लो नेरुदा, नरेश सक्सेना की चंबल किसी लड़की का नाम नहीं है। पाश, शिम्बोरश्का, धूमिल नवारूण, सर्वेश्वर। पाब्लो नेरुदा। नरेश सक्सेना की चंबल किसी ऐसी लड़की का नाम नहीं है जो मिथकों को तोड़ती और तोड़ती हो। मैं अपनी पेंटिंग्स को अधिक मानवीय बनाने की कोशिश करता हूं ताकि मैं निकटता के स्पर्श को महसूस कर सकता हूँ और इसकी गर्माहट को आत्मसात कर सकता हूँ और एक बेहतर इंसान बन सकता हूँ। आधुनिक सामाजिक अवधारणा में, जब मनुष्य को एक राजनीतिक इकाई के रूप में माना जाता है, तो यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि पेंटिंग अतीत की राजनीतिक और सामाजिक वास्तविकताओं को बदलने के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करती है, साथ ही कुछ राजनीतिक मुद्दों को भी संबोधित करती है। यह सामाजिक संरचनाओं की पुनर्व्याख्या भी करती है। पिकासो की पेंटिंग ग्वेर्निका इसका एक उदाहरण है। कला हमेशा इतिहास के रूप में सामने आती है। इसलिए मैं इस भाषा में वह सब दिखाने की कोशिश करता हूँ।
बातचीत के दौरान लखनऊ से अपने पुराने समय को जोड़ते हुए अम्बर ने बताया कि 1997 में मैने एक शो अमीनाबाद के फुटपाथ पर किया था। तब मैं साझा सांस्कृतिक अभियान के एक कार्यक्रम में लखनऊ आया था।
विनय अंबर इत्यादि आर्ट फाउण्डेशन के संस्थाक है जो मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में पिछले 9 वर्षों से “जलम ” यानि जबलपुर आर्ट लिटरेचर एण्ड म्यूजिक फेस्टिवल का आयोजन कर रहा है। सभी कला रूपों को एक साथ एक मंच पर लाकर उनके बीच संवाद,प्रदर्शन एवं क्रियान्वयन की अवधारणा के साथ हो रहे इस फेस्टिवल ने कला संगीत साहित्य रंगकर्म एवं सिनेमा समाज में अपनी महत्वपूर्ण जगह बना ली है।
कला स्रोत आर्ट गैलरी में लगी यह प्रदर्शनी आपके अवलोकनार्थ 5 दिसंबर 2024 लगी रहेगी।