कार्तिक पूर्णिमा पर गोमती में लगी आस्था की डुबकी

लखनऊ। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान कर दान पुण्य करने की सनातन परपंरा का निर्वहन भी किया जाता है। शुक्रवार को सुबह-सुबह श्रद्धालुओं ने गोमती में डुबकी लगाई और स्नान के बाद आदि गंगा गोमती के घाटों पर श्रद्धालुओं ने गरीबों को दान दिया।
कुड़ियाघाट पर पिछले साल के मुकाबले स्नान करने वालों की संख्या अधिक रही। झूलेलाल घाट के साथ ही संझिया व अग्रसेन घाट पर भी लोगों ने स्नान किया। लक्ष्मण मेला घाट के अलावा खदरा के शिव मंदिर घाट ओम ब्राह्मण समाज के धनंजय द्विवेदी ने स्नान कर आदि गंगा गोमती को निर्मल व स्वच्छ बनाने का संकल्प लिया। गंगा समग्र लखनऊ महानगर व श्री बड़ी काली जी मंदिर के संयुक्त तत्वावधान में आदि गंगा मां गोमती की भव्य आरती का आयोजन कुड़िया घाट लखनऊ में प्रात: सूर्योदय के समय किया गया। कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान के अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं ने भक्ति भाव से विभोर हो मां गोमती की आरती संपन्न की। जिसमें मुख्य रूप में श्री मनकामेश्वर मंदिर की महंत श्रद्धेय दिव्या गिरी जी अहिमर्दन पातालपुरी लेटे हुए हनुमान जी मंदिर के महंत डॉक्टर विवेक तागड़ी श्री बड़ी काली जी मंदिर चौक के महंत ने आरती की।
कार्तिक पूर्णिमा से करीब डेढ़ महीने तक लगने वाला ऐतिहासिक कतकी मेला भी नजर आया। पं. बिन्द्रेस दुबे ने बताया कि मान्यता है कि भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक असुर का वध कार्तिक पूर्णिमा को ही किया था और विष्णु जी का मत्स्य अवतार भी इसी दिन को हुआ था। देवताओं ने इसी दिन दीपावली मनाई थी।

भजनों के बीच नावें हुईं प्रवाहित :
उड़िया समाज की ओर से बोइटो वंदना के तहत शुक्रवार को झूलेलाल घाट पर भोर में केले के तने से बनी नावों को प्रवाहित किया गया। समाज के डीआर साहू ने बताया कि जल मार्ग से व्यापार की शुरूआत का पर्व बोइटो वंदना है।सुबह झूलेलाल घाट पूजन के साथ नाव प्रवाहित की गई। इस अवसर पर उप्र पावर कारपोरेशन के महानिदेशक सतर्कता एसएन साबत सहित समाज के लोग मौजूद थे।

इसलिए मनाया जाता है बोइटो वंदना :
हर साल कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है। मान्यता है कि पहले नाव के सहारे ओडिशा के व्यापारी नाव के सहारे जावा, सुमात्रा व श्रीलंका जैसे कई देशों में कारोबार के लिए जाते थे। बारिश के बाद शुरू होने वाली यात्रा के दौरान कोई बाधा न आए और व्यापार आगे बढ़े, इसके लिए पूजा की जाती थी। सदियों पुरानी परंपरा अभी भी जीवंत है।

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