नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि केवल 40 प्रतिशत दिव्यांगता के लिए किसी व्यक्ति को मेडिकल की पढ़ाई करने से रोका नहीं जा सकता है। जब तक कि कोई विशेषज्ञ रिपोर्ट उस व्यक्ति को एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए अक्षम नहीं घोषित कर दे।
खंडपीठ जस्टिस बीआर गवई, अरविंद कुमार और केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने मंगलवार को अपने 18 सितंबर के आदेश पर विस्तृत कारण देते हुए कहा कि उसने क्यों एक उम्मीदवार को एमबीबीएस की पढ़ाई की अनुमति क्यों दी। चूंकि उसके लिए मेडिकल बोर्ड की राय थी कि वह अपनी चिकित्सकीय शिक्षा बिना किसी रुकावट के जारी रख सकता है।
दिव्यांगता होने भर से उम्मीदवार को नहीं रोक सकते
खंडपीठ ने कहा कि किसी दिव्यांग उम्मीदवार के एमबीबीएस की शिक्षा हासिल करने की क्षमता के आकलन के लिए विकलांगता मूल्यांकन बोर्ड की राय लेना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि महज दिव्यांगता होने भर से किसी उम्मीदवार को एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।
विकलांगता बोर्ड को दिया ये निर्देश
विकलांगता बोर्ड के मूल्यांकन से ही उम्मीदवार एमबीबीएस की पढ़ाई आगे जारी रख सकता है या नहीं यह निर्धारित होगा। सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि विकलांगता बोर्ड को अगर लगता है कि कोई उम्मीदवार कोर्स आगे जारी नहीं रख सकता है, तो उसे इसके कारण भी स्पष्ट करने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एक छात्र ओमकार की याचिका पर दिया है जिसने स्नातक चिकित्सा शिक्षा विनिमयए 1997 कानून को चुनौती दी है। इसके तहत 40 प्रतिशत या उससे अधिक दिव्यांग उम्मीदवार को एमबीबीएस करने की अनुमति नहीं है।
दूसरी ओर पंजाब पंचायत चुनाव पर रोक लगाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने नामांकन प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं के आधार पर पंजाब में चल रहे पंचायत चुनावों पर रोक लगाने से मंगलवार को इनकार कर दिया और कहा कि अगर अदालतें मतदान के दिन चुनावों पर रोक लगाना शुरू कर देंगी तो अराजकता होगी।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर मतदान आज शुरू हो गया है, तो हम इस स्तर पर कैसे हस्तक्षेप कर सकते हैं ? उच्च न्यायालय ने इसकी गंभीरता को समझा और चुनाव पर लगी रोक हटा दी। सीजेआई ने कहा कि अगर हम मतदान रोकते हैं, वह भी मतदान के दिन, तो अराजकता होगी।